कांव कांव कांव !!!
कांव कांव कांव !!!
आज कौवे ने असमय ही नींद तोड़ दी ,
टेलीफ़ोन के खम्बे पर बैठा प्रलाप कर रहा है ,
साढ़े चार बजे हैं पर घने बदाल जैसे अँधेरी रात की ओरइशारा कर रहे हैं !
आज कौन आ सकता है, इस समय ओर इस मौसम में !
पर इसका प्रलाप व्यर्थ तो होता नहीं,
बाकी सब ऐसे शांत हैं, जैसे कोई मेरे लिए या मेरे पास ही आया है,
हाथ बढाकर टेबल लंप जलाया तो कमरे में भीनी भीनी सी रौशनी फ़ैल गयी,
माँ बेवक्त न उठ जाये इसलिए टेबल लंप का मुंह दूसरी ओरकर देता हूँ,
अब आधे कमरे में अँधेरा है ओर माँ शांति से सो रही है,
उधर अँधेरा है पर सामने अलमारी में रौशनी है ,
ऐसा लग रहा है की हर चीज़ से पहली बार साक्षात्कार कर रहा हूँ,
अलमारी पर रखी पापा की फोटो मुस्कुरा रही है,
"क्या हुआ नींद टूट गयी क्या?"
आप सोये नहीं क्या?
"नहीं सोया तो था पर नींद खुल गयी तो बैठ के लिखे लग गया,
कुछ बना क्या?
बन रह है, इतना पढो, देखो ये चरक्टेर अपने शुक्ल जी से कुछ मिलता जुलता नहीं है,
अरे वीनू कब से उठे हो? तबियात तो ठीक है ना?
माँ उठा गयी,
मेरी वार्ता में चंद भर का व्यवधान आ गया ,
मुंह धो लो ओर किताब बंद कर के सोया करो,
ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग !!!
वीनू देखो फ़ोन आया है ,
"ओर ज्योति बेटा कैसे हो ? रेहेअर्सल में तो आओगे ना ?"
वीनू उठो दिन भर ऐसे ही बैठे रहोगे क्या?
उफ़ ६ बज गए ओर घने बादल अब छंट गए हैं,
अब पूरी रौशनी है, अँधेरा भाग गया है ,
कांव कांव कांव !!!
कांव कांव कांव !!!
कोई नहीं आया, इतनी समय हो गया !
पर इसका प्रलाप व्यर्थ तो होता नहीं ,
हाँ आयीं तो थी !!!
ढेर सी यादें !!!
हिम्मत देने वालीं यादें !!!
दिलासा देने वाली यादें !!!
आश्वासन भरी यादें !!!
कुछ करने को प्रेरित करती हुई यादें !!!
रौशनी से भरी यादें !!!
यादें ही यादें !!!
कांव कांव कांव !!!
कांव कांव कांव !!!
आज कौवे ने असमय ही नींद तोड़ दी ,
टेलीफ़ोन के खम्बे पर बैठा प्रलाप कर रहा है ,
साढ़े चार बजे हैं पर घने बदाल जैसे अँधेरी रात की ओरइशारा कर रहे हैं !
आज कौन आ सकता है, इस समय ओर इस मौसम में !
पर इसका प्रलाप व्यर्थ तो होता नहीं,
बाकी सब ऐसे शांत हैं, जैसे कोई मेरे लिए या मेरे पास ही आया है,
हाथ बढाकर टेबल लंप जलाया तो कमरे में भीनी भीनी सी रौशनी फ़ैल गयी,
माँ बेवक्त न उठ जाये इसलिए टेबल लंप का मुंह दूसरी ओरकर देता हूँ,
अब आधे कमरे में अँधेरा है ओर माँ शांति से सो रही है,
उधर अँधेरा है पर सामने अलमारी में रौशनी है ,
ऐसा लग रहा है की हर चीज़ से पहली बार साक्षात्कार कर रहा हूँ,
अलमारी पर रखी पापा की फोटो मुस्कुरा रही है,
"क्या हुआ नींद टूट गयी क्या?"
आप सोये नहीं क्या?
"नहीं सोया तो था पर नींद खुल गयी तो बैठ के लिखे लग गया,
कुछ बना क्या?
बन रह है, इतना पढो, देखो ये चरक्टेर अपने शुक्ल जी से कुछ मिलता जुलता नहीं है,
अरे वीनू कब से उठे हो? तबियात तो ठीक है ना?
माँ उठा गयी,
मेरी वार्ता में चंद भर का व्यवधान आ गया ,
मुंह धो लो ओर किताब बंद कर के सोया करो,
ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग !!!
वीनू देखो फ़ोन आया है ,
"ओर ज्योति बेटा कैसे हो ? रेहेअर्सल में तो आओगे ना ?"
वीनू उठो दिन भर ऐसे ही बैठे रहोगे क्या?
उफ़ ६ बज गए ओर घने बादल अब छंट गए हैं,
अब पूरी रौशनी है, अँधेरा भाग गया है ,
कांव कांव कांव !!!
कांव कांव कांव !!!
कोई नहीं आया, इतनी समय हो गया !
पर इसका प्रलाप व्यर्थ तो होता नहीं ,
हाँ आयीं तो थी !!!
ढेर सी यादें !!!
हिम्मत देने वालीं यादें !!!
दिलासा देने वाली यादें !!!
आश्वासन भरी यादें !!!
कुछ करने को प्रेरित करती हुई यादें !!!
रौशनी से भरी यादें !!!
यादें ही यादें !!!
कांव कांव कांव !!!
simply great. creativity aur ilahabadi keede ko jilaye rakhna. maza aa gaya. kuch yaadeain hamesha saath rahti hain sambal ban kar.
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