शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

दुःख

सोचो ! सोचो !! सोचो !!!
जीवन में हम खुश नहीं हैं :(
क्यों ???

क्या ख़ुशी की कोई सीमा होती है,
या दुःख की पराकाष्ठा होती है,

ख़ुशी की परिभाषा क्या है ?
जिससे शरीर में संचेतना जागती है,
हृदय आनंदित होता है,
धमनियों में रक्त संचार बढ़ता है
प्रतिद्वंदी की पराजय,

दुःख का स्रोत क्या है ?
इच्छित वस्तु का ग्रहण न कर पाना,
शरीर में रोगों का आक्रमण,
लक्ष्य को हासिल ना पर पाना,
या प्रतिद्वंदी की विजय !!!

क्या ये ज़रूरी है की एक व्यक्ति की ख़ुशी से दुसरे को दुःख हो ?
क्या संपूर्ण ख़ुशी नाम की कोई चीज़ होती है,

संपूर्ण ख़ुशी वही होती है जिससे हर व्यक्ति खुश हो,
जिस ख़ुशी से दुसरे को दुःख पहुंचे,
वो ख़ुशी अधूरी है ,

अब आज सोचो तुम की जीवन में कितनी बार सम्पूर्ण ख़ुशी हुई है ?

सोचो ? सोचो ?? सोचो ???

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