शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

Khujli

खुजली 


मुझे कुछ दिनों से काफी खुजली हो रही है
वैसे खुजली तो पहले भी होती थी
पर ये खुजली कुछ अलग तरह की है
क्योंकि इस बार खुजलाने की अनुमति नहीं है

वैसे खुजली किसे नहीं होती
किसी को काम करने की तो किसी को काम ना करने की 
किसी को पैसे कमाने की तो किसी को पैसा उड़ने की 
किसी को लूटने की तो किसी को खसोटने की 
किसी को बाएं हाथ की तो किसी को दायें हाथ की 

खुजली ही कई प्रकार की होती हैं 
सबसे बड़ी नेतागिरी की 
सबसे आम अभिनय की 
लड़कियों को खूबसूरती की 
लड़कों को इश्क की 

खुजली से कई फायदे भी हुए हैं 
रतन टाटा को हुई तो नैनो आ गयी 
मार्क  जूकेरबेर्ग को हुई तो फेसबुक आया 
अन्ना हजारे को हुई तो लोकपाल क्रांति आई  
मनमोहन सिंह को हुई तो, तो भी आखिर चुप्पी ही मिली 

खुजली के कई नुक्सान भी हैं 
कलमाड़ी को हुई तो सी डब्लू जी स्कैम मिला 
लालू को हुई तो चारा घोटाला मिला 
राजा को हुई तो 2 जी स्कैम मिला 
मीडिया को हुई तो ब्रेकिंग न्यूज़ मिला 

अब इंटरनेशनल खुजली की बातें करते हैं 
ओसामा को हुई तो ट्विन टावर गए 
ओबामा को हुई तो ओसामा गया 
सद्दाम को हुई तो कुवैत गया 
बुश को हुई तो सद्दाम गया 

खेल के मैदान में खुजली 
सचिन को हुई तो सौ शतक मिले 
अजहर को हुई तो मैच फिक्सिंग मिला 
हरभजन को हुई तो गिलक्रिस्ट मंकी बना 
हरभजन को फिर हुई तो श्रीसंत पिटा 

छोटे बच्चों की खुजली 
राजू को हुई तो टिन्नू ने कर दी 
टिन्नू को हुई तो पप्पू ने कर दी 
पप्पू को हुई तो दीपू ने कर दी 
दीपू को हुई तो राजू ने कर दी 

फिल्म जगत की खुजली 
खुजा नहीं देना जी खुजा नहीं देना 
ज़माना ख़राब है खुजा नहीं देना 
इतने में राधा प्यारी आई खुजलाती 
मैंने ना जादू डाला बोली खुजलाती 

तो जनाब कहाँ से चले थे और खुजलाते खुजलाते कहाँ तक आ गए 
पर हाँ मुझे अगर खुजलाने की इजाज़त मिल जाए तो मैं 
सारे बलात्कारियों और भ्रष्ट नेताओं को नपुंसक बना दूँ 
एक स्त्री की मर्यादा तो दूसरा देश की मर्यादा लूटता है 

फांसी की सज़ा किसी भी समस्या का हल नहीं होती है 
तकलीफ तो तब होगी की खुजली आये पर वो खुजला न पायें 
वो खुजली करने के लिए हाथ उठायें पर नाखून कटा हुआ पायें 
ज़ख्म नासूर हो जाएँ पर इलाज़ मुमकिन ना हो 

मुझे इंतज़ार है उस दिन का 
जब ऐसे लोगों की या तो खुजली बंद हो जाए 
या मेरे वतन के लोगों में इन नपुंसकों के  
नाखून काटने की छमता और शक्ति आ जाये 

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

Ravan Kaun ?

रावण कौन ?


कल विजयदशमी है .

पृथ्वी पर तो सभी इस दिन का इंतज़ार करते हैं।  वैसे तो हर किसी के इंतज़ार करने की वजह अलग है पर परलोक में सिर्फ एक व्यक्ति को ही इस दिन का इंतज़ार रहता है।जैसे जैसे ये दिन करीब आता है उसे हिचकी आना शुरू हो जाती है। ऐसे बेचैनी उसे पूरे साल  नहीं होती है। उसका रोयाँ रोयाँ खड़ा हो जाता है।  सदियों से ये दिन बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।वर्षों से रावण भी आदि हो गया था अपने अहँकार के किस्से लोगों से सुनते हुए।दूसरों की नज़रों से अपने आप को काम और वासना की अग्नि में झुलसता हुए देखते हुए। राजनेताओं से ये सुनते हुए की कैसे रावण ने अपने स्वार्थ के लिए अपने कुटुंब और राष्ट्र की बलि चढ़ा दी। परन्तु आजतक कभी भी उसने कभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अब तो उसने अपना सारा समय वीणा वादन को सम्पर्पित कर दिया था।


हालाँकि विजयदशमी को बीते हुए दो महीने हो गए थे पर कुछ दिनों से उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी।  ऐसे बेचैनी और कसमसाहट उसे पहले इतनी सदियों में कभी नहीं हुई जो उसे कुछ महीनो से हो रही थी। पिछले कुछ दिनों की घटनाएं उसे विचलित कर गयी थी। धरती पर इस समय जो भी हो रहा था उससे उसकी रूह काँप उठी थी।क्यों उसे अपना दुराचार आजकल की घटनाओं के समक्ष अत्यंत सूक्ष्म लगने लगा था।


"हाँ मैंने अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन किया था। अपने स्वार्थ के लिए शूर्पणखा की नाक कटवा दी थी। सोते हुए भाई कुम्भकरण को मौत की भट्टी में झोंक दिया था। अपने पुत्रों की बलि चढ़ा दी। एक पतिव्रता स्त्री का अपहरण किया।एक राष्ट्र की बलि चढ़ी दी। सोने की लंका को मिटटी में मिला दिया। हाँ ये सब मेरी ही एक जिद्द के कारण हुआ था।"


मैंने बहुत बुरे काम किये,  सीता के अपहरण का जघन्य अपराध तो किया  उनका एक बार भी स्पर्श नहीं किया था। मुझे एक समाज सुधारक के रूप में जाना जाता था। मैंने देवताओं के बनाये हुए नियमों पर प्रश्न उठाये, पशुओं की बलि पर रोक लगवाई। सिर्फ मेरे ही शासन काल में लंका तो सोने की लंका कहा गया था। मेरा नीति शास्त्र का ज्ञान तो स्वयं भगवान् राम भी स्वीकार करते थे तभी उन्होंने मेरे अंत समय में अपने भाई लक्ष्मण को ज्ञान अर्जन के लिए मेरे पास भेजा था। मेरे बराबर का योद्धा कोई नहीं था। अद्वितीय सहस का मैं धनी था। मेरे शास्त्रों की निपुणता के आगे तो शिव भी नमन करते थे। मेरे दस शीश मेरी दरिंदगी नहीं बल्कि मेरी चार वेदों और छह उपनिषदों पर कुशलता का प्रतीक थे।


आमतौर पर अपनी खुली हंसी और अट्ठाहास के लिए रावण जाना जाता था पर आज घुटन महसूस कर रहा था। उसके हाथ वीणा के तार पर फिसल रहे थे। वो इतना विचलित हो गया की अपने निवास से बहार निकल आया खुली हवा में। आमतौर पर तो वो बहार भी नहीं आता था। आखिर वो सबका प्यारा खलनायक जो था।

नंगे पाँव गर्म रेत पर चलता हुआ वो काफी दूर निकल आया। समुद्र तट पर बैठ कर आती हुई लहरों को देख रहा था। ऐसा काफी दिनों बाद हुआ था। अपने लंका के शासनकाल में वो अक्सर एकांत पाने के लिए समुद्र तट पर बैठ कर मनन करता था। तभी उसकी निगाह एक युवती पर पड़ी। दुबली पतली से वो युवती बार बार एक केकड़े को पानी के अनदार डालने की असफल प्रयास कर रही थी। हर बार वोह केकड़े को पानी के अन्दर करती थी और लहरें उसे वापस रेत पर ला कर पटक देती थी। फिर भी वो कोशिश करती जा रही थी ये जानते हुई भी की कभी भी वो केकड़ा उसे काट सकता है। पर वो हार नहीं मान रही थी। रावण उसके सतत प्रयास से काफी प्रभावित हुआ। उससे रहा नहीं गया। उसने अपने स्थान से उठ कर उसकी मदद करने का प्रयास किया पर वो युवती एकाग्रता से अपने प्रयास में लगी हुई थी। अंत में काफी मशक्कत के बाद वो उस केकड़े को वापास पानी के अन्दर करने में सफल हुई।

रावण ने उससे पुछा तुम्हे ज़रा भी भय नहीं लगा, अगर वोह तुम्हे काट लेता तो। युवती के माथे पर एक भी शिकन नहीं आई। उसने कहा ये उसकी प्रवृत्ति है। मेरा कर्म था उसे उसके अपनों के बीच पहुँचाना। मुझे उसे उसका वो स्थान देना था जिसका उसे अधिकार है। यहाँ रहता तो किसी मनुष्य के लालच का शिकार हो जाता। मैंने तो सिर्फ उसका हक़ उसे दिया है जिसका वो हकदार था। मैं ना होती तो शायद कोई और उसकी मदद करता या क्या पता उसे मदद मिलने में अगर देर हो जाती तो वो पाने प्राणों से हाथ धो बैठता। मैंने उसे उसका जीने का हक़ उसे दिया है।


रावण ने फिर उससे पुछा, पुत्री तुम्हारा नाम क्या है ? पहली बार वो मुस्कुरायी और बोली नाम का क्या कुछ भी कह लीजिये, चाहे निर्भया कहिये या ज्योति। मैं तो बस एक प्रतीक हूँ। मेरे जैसे हर जगह आपको मिलेंगे। रावण का मन नहीं माना, उसने फिर पुछा मुझे तुम्हारे अन्दर इतनी हिम्मत होने के बाद भी इतना दर्द क्यों दिखा रहा है। ज्योति भावहीन स्वर में बोली, क्योंकि मेरी मर्यादा का  हनन हुआ है। बल से मेरे शरीर पर मेरी इच्छाओं के विपरीत आक्रमण हुआ है। न मैं पहली स्त्री हूँ जिसके साथ हुआ है और ना ही आखिरी। ये कोई नयी घटना है है, सदियों से चला आ रहा है स्त्रीयों पर अत्याचार, कभी तो पराये करते हैं और कभी अपने भी नहीं छोड़ते। ये घटना क्रम कभी थमा नहीं है। चंद लोगों ने मेरे शरीर पर वार किया पर वो मेरी आत्मा को  छू भी नहीं पाए। मैंने अपनी लड़ाई खुद लड़ने की बहुत कोशिश की। पर ऐसा नहीं हो सका।


रावण की अंतरात्मा अन्दर से हिल गयी। सदियों से वो अपने आप को जो समझाता आया था वोह चकनाचूर हो गया। अपने बुरे कृत्य के पीछे अपनी अच्छाइयों को न याद करने की उलाहना जो वो लोगों देता आया था वो  न जाने पातळ के किस कोने में जाके छुप गयी, उसे पता ही नहीं चला। ज्योति अपनी मुट्ठी में रेत लेकर बोली, आप ये देख रहें हैं। ये मेरे हाथ से कब निकल जाती है, इसका हमें पता ही नहीं चलता। जब हम अपनी मुट्ठी खोलते हैं हैं तो देखते हैं की कुछ बचा ही नहीं। समय भी ऐसा ही है, कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता। ये दुनिया बड़ी स्वार्थी है। सब लंगड़े हैं। हर किसी को एक दुसरे की लकड़ी का सहारा बनना पड़ता है। जिस दिन हम लंगडाना छोड़ देंगे, दुसरे का सहारा नहीं लेंगे और अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे उस दिन हमारा भविष्य हमारी मुट्ठी में आ जायेगा। मैं अपनी लड़ाई खुद तो नहीं लड़ सकी पर मैंने हर जागरूक मानव के अन्दर एक ज्योति दी है। इस लड़ाई को वो कितना आगे ले जाता है वो इसपर निर्भर करता है की वो कितना निर्भय है। मैंने सिर्फ शक्ति देने का प्रयास किया है। मैं कितनी सफल हुई हूँ ये तो आने वाला समय ही बताएगा। ये कहते हुए वो फिर से भागी और एक मछली जो पानी से बहार आ गयी थी उसे चुल्लू भर पानी की मदद से एक अस्थायी जलाशय में डाल आई।


रावण के अन्दर अब और कोई भी सवाल पूछने की शक्ति नहीं रह गयी थी। अब उसे समझ आया की क्यों उसका मन विचलित हो रहा था। इतने वर्षों बाद उसे उसे ग्लानी हो रही थी और अपने किये पर खुद को ही धिक्कार रहा था। पर वो ये भी सोचने पर मजबूर हो गया कि रावण कौन है, वो जो परलोक मैं हैं, या हज़ारों वो लोग जो धरती पर बेसाख्ता नर संहार कर रहे हैं, पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं, धोखाधडी कर रहे हैं, आम जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। रावण वो है, या वो जो प्रतिदिन स्त्रीयों की मर्यादा का हनन कर रहे हैं।


ज्योति उस मछली को जीवन दान देकर फिर वापास आई और बोली, विजयादशमी पर रावण का पुतला जलाने से पाप का अंत कभी नहीं होगा, उसे किये हमें अपने ह्रदय में हर पाप  और अनुचित कार्य के बीज को मारना होगा और ये हर पल करना होगा। इसके पहले रावण अपनी कोई भी प्रतिक्रिया दे पता, ज्योति एक नए प्राण को बचने के लिए दौड़ पड़ी।