शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

दुःख

सोचो ! सोचो !! सोचो !!!
जीवन में हम खुश नहीं हैं :(
क्यों ???

क्या ख़ुशी की कोई सीमा होती है,
या दुःख की पराकाष्ठा होती है,

ख़ुशी की परिभाषा क्या है ?
जिससे शरीर में संचेतना जागती है,
हृदय आनंदित होता है,
धमनियों में रक्त संचार बढ़ता है
प्रतिद्वंदी की पराजय,

दुःख का स्रोत क्या है ?
इच्छित वस्तु का ग्रहण न कर पाना,
शरीर में रोगों का आक्रमण,
लक्ष्य को हासिल ना पर पाना,
या प्रतिद्वंदी की विजय !!!

क्या ये ज़रूरी है की एक व्यक्ति की ख़ुशी से दुसरे को दुःख हो ?
क्या संपूर्ण ख़ुशी नाम की कोई चीज़ होती है,

संपूर्ण ख़ुशी वही होती है जिससे हर व्यक्ति खुश हो,
जिस ख़ुशी से दुसरे को दुःख पहुंचे,
वो ख़ुशी अधूरी है ,

अब आज सोचो तुम की जीवन में कितनी बार सम्पूर्ण ख़ुशी हुई है ?

सोचो ? सोचो ?? सोचो ???

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

इंतज़ार

इंतज़ार है ! अब भी तुम्हारा !!
क्यों ?
क्या कभी वापस आओगे ?
फिर भी एक अकल्पनीय चीज़ की मैं क्यों कल्पना करता हूँ ?

आज भी आधी रात के बाद जब दरवाज़ा बोलता है ,
अपनी पढाई से एकदम ध्यान टूटता है,
"आ गए क्या टूर से"
हाँ टूर ही पर तो गए हो और वोह भी बहुत लम्बे ,

अब भी जब भोर के वक्त जब एक रिक्शेवाला अपनी घंटी की आवाज़ से उठता है,
फिर मन में एक हूक सी उठती है,
"प्रयागराज का समय हो गया है "

कभी कभी पढ़ते पढ़ते जब मन अपने में खो जाता है और एक कठिन शब्द आता है
तो मन अन्दर से एकदम से बुदबुदाता है ---
"पापा जरा इस शब्द का मतलब तो ........."

सुबह से ले कर रात तक के चाय के दौर ,
घर से निकलने के पहले की राधास्वामी,
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे और चर्च के आगे सर झुकाना,
शेव् के समय की बातें,
नाश्ते के वक्त की बातें,
रात, दिन, सुबह, शाम
बातें ही बातें,
वही सारे शब्द एक बार फिर गूँज उठते हैं,
एक बार फिर दरवाज़े पर आवाज़ होती है,

शायद भिकारी है,
नज़र उठता हूँ तो बोलते हैं
"मेरे पोकेट में फुटकर होगा "
सामने देखता हूँ तो मानो कह रहे हो -
"जो भी हो दे दो, खाली नहीं जाना चाहिए "

उसे पैसे देने के बाद लगता है,
जो पाने की कोशिश कर रहा हूँ,
वो है मेरे पास,
हाँ वो हैं मेरे पास,
अब इंतज़ार नहीं है उनका,
क्योंकि वो मुझे मिल गए हैं,
मुझमें मिल गए हैं,

वो मेरे पास हैं,
हम एक हैं !!!

बुधवार, 6 अक्टूबर 2010

यादें

कांव कांव कांव !!!
कांव कांव कांव !!!

आज कौवे ने असमय ही नींद तोड़ दी ,
टेलीफ़ोन के खम्बे पर बैठा प्रलाप कर रहा है ,
साढ़े चार बजे हैं पर घने बदाल जैसे अँधेरी रात की ओरइशारा कर रहे हैं !

आज कौन आ सकता है, इस समय ओर इस मौसम में !
पर इसका प्रलाप व्यर्थ तो होता नहीं,
बाकी सब ऐसे शांत हैं, जैसे कोई मेरे लिए या मेरे पास ही आया है,
हाथ बढाकर टेबल लंप जलाया तो कमरे में भीनी भीनी सी रौशनी फ़ैल गयी,
माँ बेवक्त न उठ जाये इसलिए टेबल लंप का मुंह दूसरी ओरकर देता हूँ,
अब आधे कमरे में अँधेरा है ओर माँ शांति से सो रही है,
उधर अँधेरा है पर सामने अलमारी में रौशनी है ,
ऐसा लग रहा है की हर चीज़ से पहली बार साक्षात्कार कर रहा हूँ,
अलमारी पर रखी पापा की फोटो मुस्कुरा रही है,
"क्या हुआ नींद टूट गयी क्या?"
आप सोये नहीं क्या?
"नहीं सोया तो था पर नींद खुल गयी तो बैठ के लिखे लग गया,
कुछ बना क्या?
बन रह है, इतना पढो, देखो ये चरक्टेर अपने शुक्ल जी से कुछ मिलता जुलता नहीं है,

अरे वीनू कब से उठे हो? तबियात तो ठीक है ना?
माँ उठा गयी,
मेरी वार्ता में चंद भर का व्यवधान आ गया ,
मुंह धो लो ओर किताब बंद कर के सोया करो,

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग !!!
वीनू देखो फ़ोन आया है ,
"ओर ज्योति बेटा कैसे हो ? रेहेअर्सल में तो आओगे ना ?"

वीनू उठो दिन भर ऐसे ही बैठे रहोगे क्या?
उफ़ ६ बज गए ओर घने बादल अब छंट गए हैं,
अब पूरी रौशनी है, अँधेरा भाग गया है ,

कांव कांव कांव !!!
कांव कांव कांव !!!
कोई नहीं आया, इतनी समय हो गया !
पर इसका प्रलाप व्यर्थ तो होता नहीं ,
हाँ आयीं तो थी !!!
ढेर सी यादें !!!
हिम्मत देने वालीं यादें !!!
दिलासा देने वाली यादें !!!
आश्वासन भरी यादें !!!
कुछ करने को प्रेरित करती हुई यादें !!!
रौशनी से भरी यादें !!!
यादें ही यादें !!!
कांव कांव कांव !!!